Friday, July 6, 2012

Thirst of the Human Soul!

Why is it so hard to satisfy a human soul...?

Me and you...we all have goals which we want to achieve. but is there an end to it? I wonder...!

As for me..I do not think there is an end or there can ever be an end to my desires. I acheive a goal and there buds up another dream, aspiration from my heart.

My heart says...I wish...ahhh!

And my soul finds another reason to remain entangled in the worldly desires.

I talk to the infinite power we call GOD... and my heart screams loud...Break me Free!

And... I hear him say...

यह दर्द तुम्हारा नहीं सिर्फ, यह सबका है
सबने पाया है प्यार, सबने ने खोया है
सबका जीवन है भार, और सब जीते हैं
बेचैन न हो-
यह दर्द अभी कुछ गहरे और उतरता है,
फिर एक ज्योति मिल जाती है,
जिसके मंजुल प्रकाश में सबके अर्थ नए खुलने लगते,
यह सभी तार बन जाते हैं
कोई अनजान अंगुलियाँ इन पर तैर-तैर,
सबसे संगीत जगा देतीं अपने-अपने
गूँथ जाते हैं ये सभी एक मीठी लय में
यह काम-काज, संघर्ष, विरस कर्वी बातें
यह फूल, मोमबत्तियां और टूटे सपने
यह दर्द विराट ज़िन्दगी में होगा परिणीत
है तुम्हे निराशा फिर तुम पाओगे ताकत
उन उँगलियों के आगे कर दो माथा नत
जिसके छु लेने भर से फूल सितारे बन जाते हैं ये मन के चाले,
ओ मेजों की कोरों पर माथा रख कर रोने वाले-
हर एक दर्द को नए अर्थ तक जाने दो!


........and ..I Believe!


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